कनिष्क का रबातक अभिलेख - प्राप्ति स्थल, खोज तथा ऐतिहासिक महत्व
प्राप्ति स्थान तथा खोज
अफगानिस्तान के बाग़लन प्रांत के रबातक नामक स्थान पर काफ़िर का किला के नाम से प्रसिद्ध एक पहाड़ी पर 1993 ईस्वी में एक शैल पट्टिका पाई गई जिसपर एक अभिलेख उत्कीर्ण था। यहाँ से लौह प्रतिमाओं और एक प्राचीन मंदिर का भी साक्ष्य मिला है। बाग़लन प्रांत के तत्कालीन गवर्नर सैय्यद जाफर ने एक गैर सरकारी संस्था में कार्य कर रहे टीम पोर्टर को इस कार्य को करने के लिए निमंत्रित किया। उनसे यह दरख्वास्त किया गया कि उनमें से एक तस्वीर को ब्रिटिश संग्रहालय भेजें। पोर्टर ने जिस तस्वीर को ब्रिटिश संग्रहालय भेजा वह 25 सेंटीमीटर मोटाई 90 सेंटीमीटर लंबाई व 50 सेंटीमीटर ऊंची एक आयताकार शैल पट्टिका पर लिखें अभिलेख का था।
ऐतिहासिक महत्व की सूचनाएं
कुषाण शासकों में परिलक्षित देवत्व की अवधारणा
रबातक अभिलेख कनिष्क के समय का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इस अभिलेख में कनिष्क को एक महान उद्धारक धर्मपरायण सम्राट के रूप में परिलक्षित किया गया है। एक देवता के रूप में उपास्य इस सम्राट ने नाना (पश्चिम एशिया में पूज्य एक देवी) के द्वारा राज्य प्राप्त किया तथा अन्य सभी देवताओं ने उसे सम्राट के रूप में अधिकृत किया। उसे सम्राटों के सम्राट और देवपुत्र के रूप में भी संबोधित किया गया है। कनिष्क के विषय में यह भी लिखा था कि उसने यूनानी भाषा के स्थान पर बैक्ट्रियाई आर्यभाषा को प्रचलित किया।
मंदिर निर्माण तथा सम्वत का प्रारम्भ
रबातक अभिलेख के अनुसार कनिष्क ने अपने सफर नाम के एक अधिकारी को एक मंदिर के निर्माण का आदेश दिया जहाँ नाना देवी तथा कई अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाओं की स्थापना की गई। सम्राट ने यह भी आदेश दिया था कि उसके परपितामह कुजुलकडफिसेस, पितामह सद्दाशकना, पिता विम कडफिसेस और स्वयं कनिष्क की प्रतिमाओं को स्थापित किया जाए। सफर ने उसके निर्देशानुसार एक मंदिर का निर्माण कराया जहाँ मोकोनजोका नाम के किसी व्यक्ति की देखरेख में पूजा की जाने लगी जैसा कि शाही आदेश था। कनिष्क के स्वास्थ्य और विजयों को सुनिश्चित करने के लिए इस अभिलेख में भी अनेक देवताओं का आह्वान किया गया। इस अभिलेख में यह भी उल्लेख है कि कनिष्क ने मंदिर में स्थापित देवी देवताओं की अर्चना पूजा की। यह भी लिखा है कि अपने राज्यारोहण के वर्ष से कनिष्क ने एक नए सम्वत की शुरुआत की।
कुषाण शासकों के वंशावली से सम्बंधित जानकारी
कुषाण वंश के शासकों की वंशावली पर इस अभिलेख से काफी जानकारी मिलती है। एन सिम्स विलियम्स (N. Smith Williams) एवं जो किब्र (Joy Krib) ने 13वीं पंक्ति के आधार पर यह बताया है कि उन्हें अब तक अज्ञात एक कुषाण शासक वीमा टक्टो का पता चला है जो कुजुलकडफिसेस का एक पुत्र था हालांकि वी एन मुखर्जी (N. Mukhariji) के अनुसार यह नाम असलियत मे सद्दशकना पढ़ा जाना चाहिए जो कुजुलकडफिसेस का एक पुत्र था। इस अभिलेख से यह भी स्पष्ट होता है कि विम कडफिसेस और कनिष्क पिता-पुत्र थे।
साम्राज्य विस्तार
यह अभिलेख कनिष्क के साम्राज्य विस्तार पर भी महत्वपूर्ण प्रकाश डालता है। इस अभिलेख के अनुसार कनिष्क के साम्राज्य में कौंडिन्य, उज्जैनी, साकेत, कौशाम्बी, पाटलिपुत्र तथा चम्पा भी आते थे। अतिशयोक्ति ही सही लेकिन लिखा है कि संपूर्ण भारत ही कनिष्क का राज्य था। पूर्व में उसका साम्राज्य पाटलिपुत्र और चम्पा तक फैला था। कौंडिन्य को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में वर्धा नदी के किनारे स्थित कौंडिन्य से चिन्हित किया गया है और यह कनिष्क के साम्राज्य का दक्षिणी सीमांत हो सकता है।
कनिष्क का राजत्व तथा देवत्व
कनिष्क द्वारा प्रतिपादित राजत्व के सिद्धांत पर भी यह अभिलेख महत्वपूर्ण प्रकाश डालता है। कनिष्क अपने राज्य को नाना देवी तथा कई अन्य देवी देवताओं के द्वारा प्रदत्त बदलता है। इनमें से प्रायः सभी देवी देवता जरथ्रूष्ट के धर्म से संबंध लगते हैं। सम्राट तथा सम्राट के पूर्वजों की प्रतिमाओं को भी उनके निर्देश पर बने मंदिर में स्थापित किया गया था। कनिष्क की शैल प्रतिमाएं अफगानिस्तान के सुर्ख-कोटल और मथुरा के निकट माट नामक स्थान से प्राप्त हुई है। रबातक में भी इस प्रतिमा के होने की प्रबल संभावना है। एक अनसुलझा प्रश्न यह है कि क्या सम्राट की प्रतिमाएं मात्र देवी देवताओं की अनुपूरक प्रतिमाओं के रूप में बनाए गए थे अथवा सम्राटो की प्रतिमाओं की स्थापना के लिए ही मंदिर का निर्माण किया गया था? क्या कुषाण सम्राट अपने को देवत्व से सीधा जुड़ा हुआ मान रहे थे अथवा स्वयं को देवता का दर्जा दे रहे थे?