दिव्यावदान नामक बौद्ध ग्रंथ से हमें अशोक तथा उसके उत्तराधिकारियों से लेकर पुष्यमित्र शुंग तक के शासकों के विषय में सूचना मिलती है। बिंदुसार के शासनकाल में होने वाले तक्षशिला विद्रोह की सूचना तथा राजा द्वारा उसको दबाने के लिए अपने पुत्र अशोक को भेजे जाने का विवरण प्राप्त है। इस ग्रंथ से यह सूचना मिलती है की बिंदुसार के दरबार में 500 विद्वानों की सभा थी, जिसका प्रधान खल्लातक नामक व्यक्ति था। संभवतः वह कौटिल्य के बाद हुआ होगा। बिंदुसार ने संभवतः 25 वर्षो तक राज्य किया और उसकी मृत्यु 273 BC में हुई तथा बिंदुसार की राज्यसभा में आजीवक सम्प्रदाय का एक ज्योतिषी निवास करता था।
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Brief note on Divyavadana |
मौर्य सम्राट अशोक के प्रारंभिक जीवन के लिए मुख्यतः बौद्ध साक्ष्य दिव्यावदान तथा सिंघली अनुश्रुतियों पर ही निर्भर कारना पड़ता है। दिव्यावदान से पता चलता है कि अशोक अपने पिता के शासनकाल में अवन्ति का उपराजा था। बिंदुसार की बीमारी का पता चलने पर वह पाटलीपुत्र आया।
सिंघली अनुश्रुति के अनुसार उसने अपने 90 भाइयों के हत्या कर राजसिंहासन प्राप्त किया। दिव्यावदान से अशोक की माता का नाम सुभद्रांगी मिलता है जो चम्पा के एक ब्राह्मण की कन्या थी तथा उसकी पत्नी का नाम तिष्यरक्षिता मिलता है और उसके दो भाई सुसीम तथा विगतशोक का भी उल्लेख मिलता है जिन्हें सिंहली परंपरा में सुसन तथा तिष्य कहा गया। इस प्रकार उत्तरी बौद्ध परम्पराओ में यह युद्ध केवल अशोक तथा उसके बड़े भाई सुसीम के बीच का बताया गया है। किन्तु दक्षिणी परंपरा के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या की थी। दिव्यावदान अशोक को बौद्ध धर्म में दीक्षित करने का श्रेय उपगुप्त को देता है।
सम्राट अशोक के जीवन के अंतिम समय की कहानी
दिव्यावदान में जो विवरण प्राप्त होता है उससे पता चलता है की अशोक का शासनकाल जितना ही गौरवशाली था, उसका अंत उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण था। अशोक राजकीय कोष से बहुत धन बौद्ध विहार को देने लगा जिसका उसके अमात्यों ने विरोध किया और उसके पुत्र सम्प्रति को भड़काया। सम्प्रति ने भण्डारगरिक को सम्राट की आज्ञानुसार कोई भी धनराशि दान में न देने का आदेश दिया था। सम्राट के निर्वाह के लिए केवल आधा आंवला दिया जाने लगा और उनके उपयोग की सभी व्ययों पर कटौती की गयी अशोक का कर प्रशासन के ऊपर वास्तविक नियंत्रण न रहा तथा अंततः दुखद परिस्थितियों में इस महान सम्राट का अंत हुआ।
- कुणाल
- सम्प्रति (कुणाल का पुत्र)
- वृहस्पति (सम्प्रति का पुत्र)
- वृषसेन
- पुष्यधर्मन
- पुष्यमित्र
दिव्यावदान में पुष्यमित्र को मौर्य वंश का अंतिम शासक बताया गया है था उसका चित्रण बौद्ध धर्म के संहारक के रूप में होता है किन्तु यह विवरण विश्वशनीय नही है।